सभी संस्कार अनित्य आहे
☸अनिच्च (अनित्य)☸
तथागत बुद्ध ने कहा -
पाँचों स्कंध अनित्य हैं-
विज्ञान अनित्य हैं,
दु:ख अनित्य हैं ।
जो अनित्य हैं, सो दु:ख हैं ।
जो दु:ख हैं, सो अनात्म हैं ।
जो अनात्म हैं, वह न मेरा हैं, न वह मैं हूँ और न वह मेरी आत्मा हैं ।
मन की उत्पत्ति, चित्त, चेतना ही विज्ञान हैं । पूर्व जन्म के क्लेश और कर्म के कारण उत्पन्न नई चेतना को विज्ञान कहा गया हैं । इससे नामरूप की उत्पत्ति होती हैं ।
भिक्खुओ ! जब अपनी आंख ठीक हो, बाहर की वस्तुएं ( रूप ) सामने हों, और हों उनका संयोग, तभी उससे उत्पन्न हों सकने वाले विज्ञान का प्रादुर्भाव होता हैं ।
इसलिए विज्ञान हेतु ( प्रत्यय =कारण ) से पैदा होता हैं; बिना हेतु से विज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती ।
बुद्ध ने कहा -
सब्बे सञ्खारा अनिच्चाति,
सब्बे सञ्खारा दुक्खाति,
सब्बे धम्मा अनत्ताति,
एस मग्गो विसुद्धिया ।
यह बुद्धों के द्वारा उपदेशित विशुद्धि मार्ग हैं, जो प्रज्ञा से देखा जाता हैं, भावित किया जाता हैं।
यही मार्ग से निर्वाण की प्राप्ति होती हैं ।
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